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Showing posts from August, 2025

दारिद्र्यदहन शिव स्तोत्र - Daridrya Dahan Shiv Stotra

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   दारिद्र्यदहन शिव स्तोत्र (चित्र - Google से साभार) विश्वेश्वराय  नरकार्णव  तारणाय कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय कर्पूरकांति  धवलाय  जटाधराय       दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय… गौरी  प्रियाय   रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिप कंकणाय गंगाधराय    गजराज   विमर्दनाय    दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय… भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय उग्राय   दुर्गभवसागर  तारणाय ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय      दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय… चर्माम्बराय   शवभस्म  विलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुंडल मण्डिताय मंजीर   पादयुगलाय   जटाधराय     दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय… पंचाननाय फनिराज विभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय आनंदभूमिवरदाय    तमोमयाय       दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय… भानुप्रियाय   भवसागर   तारणाय कालान्तकाय कमलासन पूजिताय नेत्रत्रयाय   शुभलक्षण    लक्षिताय     दार...

दैनिक शिव आराधना - हिंदी ब्लॉग

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  एक शिव-भक्त की नित्य प्रार्थना कम-से-कम क्या होनी चाहिए ?   परमेश्वर शिव 🙏    {Click here to read this post in English}           एक शिव-भक्त के लिए शिव परमेश्वर हैं। वे सभी तीनों गुणों (सत, रज और तम) से परिपूर्ण सर्व-शक्तिशाली हैं। वे परम सत्य हैं, तारण करने वाले और परमानन्द के दाता हैं। यही कारण है कि शिव सबसे सुन्दर हैं। यह तथ्य संस्कृत के प्रसिद्ध विशेषण-समूह से प्रकट होता है जो शिव की विशेषता बताते हैं -  सत्यम शिवम् सुंदरम.  शिव सर्वव्यापी हैं, अनादि हैं और अनन्त हैं। अर्थात वे हर स्थान पर हैं, न कोई उनका जन्म है और न उनका अन्त। इस ब्रह्माण्ड के जन्म से पहले से शिव हैं और जब इसका अन्त होगा तब भी वे रहेंगे क्योकि वे परमेश्वर हैं।  शिव परब्रह्म परमात्मा हैं, उनका न आदि है न अंत है।   इस ब्रह्माण्ड में हर जीव अपने माता -पिता से जन्म लेता है किन्तु शिव के साथ ऐसा नहीं है। वे स्वयं से हैं, इसीलिए उन्हें  स्वयंभू या  शंभू  भी कहा जाता है। एक तरफ तो वे निर्गुण -निराकार ब्रह्म के रूप में इस ब्रह्माण्ड में ह...

शिवरात्रि कथा - ऋषि भृगु को सीख

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  महर्षि भृगु (चित्र :गूगल से साभार)            ऋषि भृगु सप्तऋषियों में से एक थे और वे भगवान शिव के परम भक्त थे। जब भगवान शिव योग का प्रसार और सृष्टि की व्याख्या सप्तऋषियों से कर रहे थे तो यह शिक्षादायी घटना घटी। यह कार्यक्रम कांति सरोवर के किनारे हो रही थी जिसे कृपा की झील के नाम से भी जाना जाता है। प्रतिदिन की तरह ऋषि भृगु सुबह जल्दी आये और शिव की प्रदक्षिणा करने के लिए उद्यत हुए। उस समय माता पार्वती भी शिवजी के समीप बैठी थीं। भृगु ने दोनों के बीच से हो कर परिक्रमा प्रारम्भ की क्योंकि वे सिर्फ शिव की प्रदक्षिणा करना चाहते थे, पार्वती की नहीं। इससे शिव तो प्रसन्न हुए पर पार्वती नहीं। उन्हें यह पसंद नहीं आया। उन्होंने शिव जी की ओर देखा।             शिव जी ने कहा थोड़ा और समीप हो जाओ, वह परिक्रमा करेगा। माता पार्वती और समीप आ गयीं। भृगु ने जब देखा कि उनके बीच से निकलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है तो उन्होंने एक चूहे का रूप धारण कर पार्वती को बाहर रखते हुए अकेले शिव की परिक्रमा की। इससे पार्वती क्रोधित हो गयीं। तब भगवान ...

शिवरात्रि कथा - कुबेर का अहंकार चूर हुआ

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  कुबेर और गणपति (चित्र :गूगल से साभार)          कुबेर यक्षों के राजा थे। यक्ष बीच का जीवन होते हैं, वे ना यहाँ के जीवन में होते हैं और ना ही वो पूरी तरह से जीवन के बाद वाली स्थिति में होते हैं। तो यक्षों के राजा कुबेर को रावण ने लंका से निकाल दिया और स्वयं लंकाधिपति बन बैठा। कुबेर को मुख्य भूमि की ओर भागना पड़ा। अपने राज्य और प्रजा से विहीन हो कर कुबेर बहुत दुखी हुए। निराशा में उन्हें एक शिव ही आशा की किरण नजर आये। उन्होंने शिव की आराधना करना प्रारम्भ किया और शिव भक्त बन गए।             शिव कुबेर की पूजा से प्रसन्न हुए और दया भाव दिखते हुए उन्हें एक अन्य राज्य और संसार का सारा धन दे दिया। इस प्रकार कुबेर संसार के सबसे धनी व्यक्ति बन गए। एक प्रकार से कुबेर धन के पर्याय बन गए। धन मतलब कुबेर - यह कुछ इस प्रकार देखा जाने लगा। कुबेर अनुग्रहीत हो कर शिवभक्त बन गया और शिव पूजा में बहुत प्रकार के चढ़ावे भेंट करने लगा यद्यपि शिव उसमें से सिर्फ भभूति के आलावा कुछ नहीं छूते थे। किन्तु अब कुबेर के मन में भक्ति का अहंकार आने लगा। उन्हें...

शिवरात्रि कथा - चित्रभानू शिकारी की शिवपूजा

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  शिकारी चित्रगुप्त (चित्र सांकेतिक मात्र)          यह एक पौराणिक कथा है। प्राचीन काल में चित्रभानू नामक एक शिकारी जानवरों का शिकार करके अपने कुटुम्ब का पालन पोषण करता था। एक रोज वह जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन दिन भर भागदौड़ करने पर भी उसे कोई शिकार प्राप्त न हुआ। वह भूख-प्यास से व्याकुल होने लगा। शिकार की बाट निहारता-निहारता वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर अपना पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को इस बात का ज्ञात न था।        बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाते-बनाते उसने जो टहनियां तोड़ी, वे संयोग से शिवलिंग पर जा गिरी। शिकार की राह देखता-देखता वह बिल्व पेड़ से पत्ते तोड़-तोड़ कर शिवलिंग पर अर्पित करता गया। दिन भर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। इस तरह वह अनजाने में किए गए पुण्य का भागी बन गया।        रात्रि का एक पहर व्यतीत होने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने आई। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बो...

Lord Shiva Aarti -- भगवान शिव की आरती

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  महादेव शिव शम्भू कैलाशपति Lord Shiva Aarti  भगवान शिव की आरती ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा...॥ एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव ओंकारा...॥1॥ दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा...॥2॥ अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी। चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा...॥3॥ श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव ओंकारा...॥4॥ कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धारी। जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा...॥5॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव ओंकारा...॥6॥ काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठि दर्शन पावत महिमा अति भारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा...॥7॥ त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥8॥ ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ≈≈≈≈≈≈≈≈  ✸  ≈≈≈≈≈≈≈≈ इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची एवं लिंक  :-- 83....