शिवरात्रि कथा - कुबेर का अहंकार चूर हुआ

 

कुबेर और गणपति (चित्र :गूगल से साभार)


         कुबेर यक्षों के राजा थे। यक्ष बीच का जीवन होते हैं, वे ना यहाँ के जीवन में होते हैं और ना ही वो पूरी तरह से जीवन के बाद वाली स्थिति में होते हैं। तो यक्षों के राजा कुबेर को रावण ने लंका से निकाल दिया और स्वयं लंकाधिपति बन बैठा। कुबेर को मुख्य भूमि की ओर भागना पड़ा। अपने राज्य और प्रजा से विहीन हो कर कुबेर बहुत दुखी हुए। निराशा में उन्हें एक शिव ही आशा की किरण नजर आये। उन्होंने शिव की आराधना करना प्रारम्भ किया और शिव भक्त बन गए। 

           शिव कुबेर की पूजा से प्रसन्न हुए और दया भाव दिखते हुए उन्हें एक अन्य राज्य और संसार का सारा धन दे दिया। इस प्रकार कुबेर संसार के सबसे धनी व्यक्ति बन गए। एक प्रकार से कुबेर धन के पर्याय बन गए। धन मतलब कुबेर - यह कुछ इस प्रकार देखा जाने लगा। कुबेर अनुग्रहीत हो कर शिवभक्त बन गया और शिव पूजा में बहुत प्रकार के चढ़ावे भेंट करने लगा यद्यपि शिव उसमें से सिर्फ भभूति के आलावा कुछ नहीं छूते थे। किन्तु अब कुबेर के मन में भक्ति का अहंकार आने लगा। उन्हें लगा कि वह महानतम भक्त है। 

 

           एक दिन कुबेर शिव के पास गए और कहा, "मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ? मैं आपके लिए कुछ करना चाहता हूँ।" शिव जी ने कहा, "तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो? कुछ भी नहीं। क्योंकि मुझे किसी चीज की आवश्यकता ही नहीं है। मैं ऐसे ही ठीक हूँ।" फिर गणपति की ओर इशारा करते हुए कहा, "ये मेरा बेटा हमेशा भूखा रहता है, इसे अच्छे से खिला दो।"

            "यह तो अत्यंत सरल है।" यह कह कर कुबेर गणपति को अपने साथ भोजन के लिए ले गए। उन्होंने गणपति को खिलाना प्रारम्भ किया और गणपति खाते गए, खाते गए। कुबेर ने सैकड़ों रसोइयों की व्यवस्था की और प्रचुर मात्रा में खाना बनवाना शुरू किया। सारा भोजन गणपति को परोसा गया और वे सब खा गए। उनका भोजन अभी समाप्त नहीं हुआ था। यह देख कर कुबेर चिंतित हो गए और कहा, "रुक जाओ, अगर तुम इतना खाओगे तो तुम्हारा पेट फट जायेगा।" गणपति  कहा, "आप उसकी चिंता मत करो, देखिये मैंने साँप को कमर पेटी के रूप में  बाँध रखा है। आप मेरे पेट चिंता न करें, मुझे खाना खिलायें। आप ही ने कहा था कि आप मेरी भूख मिटा सकते हैं।"

              कुबेर ने सारा धन खर्च कर दिया। यहाँ तक कि दूसरे लोकों से भी भोजन मँगवाकर गणपति को खिलाया। गणपति ने सारा भोजन खाने के बाद भी कहा, "मैं अभी भी भूखा हूँ। मेरा भोजन  कहाँ है ?" तब कुबेर को अपने विचार के छोटेपन का एहसास हुआ और उसने शिव के सामने झुकते हुए कहा, "मैं समझ गया, मेरा धन आपके सामने एक तिनके के समान भी नहीं है। जो आपने मुझे दिया उसी का कुछ अंश आपको वापस दे कर मैंने स्वयं को एक महान भक्त समझने की गलती की।" और इस क्षण के बाद कुबेर का अहंकार समाप्त हुआ और शिव कृपा प्राप्त हुई। शिव जी ने कुबेर को एक मुट्ठी चावल दिए और गणपति को खिलाने कहा। वह चावल खाने के बाद गणपति की भूख समाप्त हुई। गणेश ने कुबेर को कहा, "धन भूख को संतुष्ट नहीं कर सकता यदि अहंकार में आ कर खिलाया गया हो। यही भोजन यदि प्रेम और विनम्रता से खिलाया गया होता तो आपको इतना शर्मिंदा न होना पड़ता। "    

                                                         -- सद्गुरु के प्रवचनों से साभार      


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